Page 42 - Mann Ki Baat - Hindi May 2022
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                                   एक भयारत श्ष्ठ भयारत

                          भारत कती विविधता का उत्सि



                                           विविध  भाराओं,  धमषों,  संकिवतयों  और
                                                                 ृ
                  भारि  कई  भाषाओं,  थलक्पयों
                                           परम्पराओं  िाि  भारत  दश  िे  िमेशा
                                                       े
                                                               े
          और  िरोथलयों  का  एक  समृद्ध
                                           अपिी बहुिता को संजोया ि- विविधता
                                                                 ै
          खजाना  ह।  अलग-अलग  क्ेत्ों  म  ें
                  ै
                                           िमेशा  भारत  कती  विरशष्ट  पिचाि  का
                          ें
          मभन्न-मभन्न  परोशाक,  खान-पान
                                                                   ै
                                           एक  अविभाज्य  हिस्ा  रिी  ि।  इतिी
                 ृ
                                 ं
          और सस्कति हमाररी पहचान ह। एक
               ं
                                 ै
                                           विविधताओं क बािजूद, राष्ट् विविधता में
                                                     े
               े
          राष्ट  क  रूप  में  यह  क्िक्िधिा  हम  ें
                                                                ै
                                           एकता का प्तीक बिा हुआ ि। एकता कती
          मजिि  करिरी  ह  और  हमें  एकजर
              ू
                       ै
                                    ु
                                           यि  भाििा  भाई-चारे  कती  एक  क्चरस्ाई
          रखिरी ह। ै
                                           िौ क रूप में िमेशा कायम ि, जो िममें से
                                               े
                                                                ै
                                           प्त्क क प्यासों से पोवरत िोती ि। ै
                                              े
                                                  े
                   – प्रधानमंत्री नरेन्द् मरोदरी
                                                      े
                          े
               (‘मन की िाि’ क सम्रोधन म)   आज,  जब  दश  आज़ादी  का  अमृत
                                    ें
                                           मिोत्सि मिा रिा ि, यि याद रखिा बहुत
                                                         ै
                                                    ै
                                           मित्वपूणन्स ि वक िे िमारे मिाि स्वतंत्ता
                                           सेिािी िी थे रजन्ोंिे स्वतंत् और संयुक्
                                           भारत  क  निए  अपिे  सुदृढ़  दृखष्टकोण,
                                                 े
                                           निरंतर प्यासों और अिक्गित संघरषों क
                                                                        े
                                           माध्म से आज़ाद भारत कती िींि रखी थी।
                                              े
                                           उिक असंख् और अिक्गित बनिदािों
                                           क कारण िी आज िम एक शांवतपूणन्स और
                                            े
              “मैं  माििीय  प्धािमंत्ी
                                                                      े
                                           प्गवतशीि जीििशैिी का आिंद ि रि  े
              मोदीजी  का  बहुत-बहुत
                                            ैं
                                                       े
                                           ि  और  जीिि  क  िर  क्ेत्  में  अपिी  पूरी
              धन्यिाद  करिा  चािती
                                           क्मता  का  उपयोग  करिे  में  सक्म  ि।
                                                                        ैं
              हूँ।  उिक  शब्ों  से  मेरे
                    े
                                           भारत क िौि पुरुर सरदार िल्भभाई
                                                 े
              आत्मविश्ास  को  और
                                           परि एक ऐसे िेता थे रजिका एक भारत
                                             े
              बढ़ािा नमिा ि और प्ेहरत
                         ै
                                                             े
                                           कती  िींि  रखिे  में  उल्खिीय  योगदाि

              वकया  ि  वक  मैं  अपिी
                    ै
                                           रिा ि। स्वतंत्ता क बाद उन्ोंिे भारत को
                                                        े
                                               ै
              आगे कती पढ़ाई और बितर
                             े
                                           एकजुर करिे का मित्वपूणन्स कायन्स वकया
                  े
              तरीक से करू।”
                        ूँ
                                           और  िे  अखंड  भारत  क  रशल्पकार  बि
                                                            े
                         – कल्पना
                                           गए।
                            े
                      छात्ा, दिरादूि
                                                                    े
                                                                 े
                                              े
                                           “परि  िे  िमें  ’एक  भारत’  दिे  क  निए
                                                               े
                                           काम  वकया,  अब  इसे  श्ष्ठ  भारत  म  ें
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