Page 46 - Mann Ki Baat - Hindi May 2022
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                कल्पनया - एक भयारत श्ष्ठ भयारत की यवया चैंब्पयन
                                       े
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          ‘एक  भारत  श्ष्ठ  भारत’  की  भावना   कल्पिा  किती  ि,  "मैं  तीसरी  कक्ा  म  ें
                                                         ैं
                                                                       ूँ
          अब और मज़बूत हरो रही ह। प्रधानमंत्ी   थी  जब  री.बी.  कती  िजि  से  मेरी  आखों
                             ै
          नरेन्द् मरोदी ने अपने ‘मन की बात’ म  ें  कती  रौशिी  चिी  गई।  इससे  मेरे  निए
                       ्ट
                                                 ें
          कल्पना  का  वणन  पकया  और  कहा   मस्किि  बहुत  बढ़  गई  थीं।  उस  समय
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                                              े

          पक  वे  ‘एक  भारत  श्ष्ठ  भारत’  की   मैं दिरादूि में पढ़ रिी थी और विद्यािय
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                              ्ट
          िीवन्त उदाहरण हैं। दूरदशन की टीम   में  समायोजि  करिा  मेरे  निए  बहुत
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          ने कल्पना िे उनक िफ़र क बारे म  ें  मस्किि िो गया था। मिे अपिे दादाजी
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          और िानने हतु बात की।             को  अपिी  फदक्कतों  क  बारे  में  बताया,
                                                                 े
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                                           रजसक बाद िे मुझे मैसूरु ि आए। यिा  ूँ
                                                े
                                           मैं  प्ोफसर  तारामवतसि   से  नमिी,  रजिकती
                                                         ू
                                           मदद  से  मेरा  प्िेश  रंगराओ  मेमोहरयि
                                           किि फॉर हडसेबर् में हुआ। उस समय
                                             ू
                                           मुझे कन्नड़ ज़रा भी ििीं आती थी। पर
                                           मेरे  सिपाहठयों,  रशक्कों  और  प्ोफसर
                                                                      े
                                           तारामवतसि   िे  भारा  सीखिे  में  मेरी
                                                ू
                                           बहुत  मदद  कती।  िे  सब  मुझसे  रसफ
                                                                        न्स
                                           कन्नड़  में  िी  बात  करते  थे,  रजससे  म  ैं
           ु
          कछ  मिीिों  पिि  तक  कल्पिा  को   भारा  जल्दी  सीख  सक।  िवकि  तभी
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                                                                 े
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          कन्नड़ भारा ज़रा भी ििीं आती थी। जब   (कोविड-19)  मिामारी  आ  गई  और
          िि तीसरी कक्ा में थीं, तब उन्ोंिे अपिी   विद्यािय में चि रिी िमारी पढ़ाई रुक
                                                     े
                                                              ू
          आखों कती रौशिी खो दी। िवकि 'एक   गई।  तब  प्ोफसर  तारामवतसि   िे  मुझे  घर
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                              े
                                                                       ू
                                                                 ें
          भारत श्ष्ठ भारत' कती भाििा से प्ेहरत,   पर पढ़िा शुरू करिे और सेकडरी किि
                े
          उन्ोंिे मैसूरु कती प्ोफसर तारामूवतसि से   िीविंग  सहर सि फफकर  परीक्ा  दिे  को
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                                                                    े
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          ि  रसफ  कन्नड़  भारा  सीखी,  बक्कि   प्ोत्साहित वकया। मिे रसफ तीि मिीिे
                                                               न्स
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               न्स
          दसिीं कती परीक्ा में कन्नड़ भारा में ९२   में कन्नड़ सीखी और परीक्ा में ९२ अंक
          अंक भी प्ाप्त वकए।               िाकर पास हुई।"
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          कल्पऩा क सफ़र
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