Page 49 - Mann Ki Baat - Hindi May 2022
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विश् स्वीकार करे तो जििायु पहरितन्सि, कन्याकमारी तक सिमान्य थीं। िर प्कार
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प्दूरण, जि-संकर जैसी समस्ाए आज कती विविधता कती स्वीकायता भारत कती
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भी सुिझ सकती ि। यिा दि ऋण क साथ एकता का आधार रिी ि। और इसी आधार
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वपतृ ऋण और ऋवर ऋण कती संकल्पिाए ूँ को मज़बूती प्दाि करिे क निए, दश क
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मिुष्य को व्क्क् से व्क्क्त्व में बदि यिाओं को इि विवि धताओं से पहरक्चत
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दती ि। मि कती बात में यि तत्व िर बार करािे क निए, इसे आत्मसात करि े
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उभरते ि, क्ोंवक िरेन्द् मोदी िे अपिे क निए प्धािमंत्ी िरेन्द् मोदी िे ‘एक
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प्ारस्म्क िरषों में दश क ४०० से अक्धक भारत श्ष्ठ भारत’ कती यि मुहिम चिाई ि।
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शिरों में रावत् विश्ाम वकया ि, भारत को जब एक करि का यिा असनमया बोिी
और उसकती एकता तथा श्ष्ठता को दखा सीखता ि, या एक गुजराती महििा अपिी
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ि, पिचािा ि, और उसे पुिः कसे स्ावपत बंगािी नमत् से िूची बिािा सीखकर
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वकया जा सकता ि, इसे समझा ि। िे इसे अपिे पहरिारजिों क आगे परोसती ि तो
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िी साकार रूप द रि ि। ैं इससे एक भारत श्ेष्ठ भारत कती धारणा
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को मज़बूती नमिती ि। जो सकिवत
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भारत में िैचाहरक स्वायत्ता िफदक काि क
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मिुष्य को ईश्र का अंश– जीि अवििाशी
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पिि से विद्यमाि थी, िर व्क्क् को अपिा
स्वीकार करती िो, ििरॉं कोई भेदभाि तो िो
पंथ, आस्ा, पूजा पद्धवत चििे का अक्धकार
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िी ििीं सकता, बक्कि यफद दश क िोग
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था, ईश्र को माििे या ि माििे कती छ ू र
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यिा कती विविधता को ग्िण करें और एक-
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थी। कछ इस स्वायत्तता क फिस्वरूप
दूसरे को बितर जाििे-समझिे िगें तो
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और कछ भौगोनिक-ऐवतिारसक कारणों
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इससे दश को बहुत बि नमिगा।
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कती िजि से िमारे दश क िर प्ात म ें
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नभन्न-नभन्न सकिवतयों का, भाराओं भारत क युिाओं क समक् अिसरों का
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का, रिि-सिि, िेश-भरा, किा साहित् खुिा आकाश उपस्स्त ि। व्िस्ा और
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आफद का विकास हुआ ि। इस विविधता समाज उिक साथ खड़ा ि। यिी उिक पंख
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क बािजूद कई ऐसी मान्यताए ि जो ि, उन्ोंिे सफि उड़ािें भरी ि, आगे भी
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िमें आपस में जोड़ती ि, जैसे ‘अवतनथ भारत कती एकता और श्ष्ठता का प्तीक
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दिो भि’ कती मान्यता हिमािय से िकर वतरंगा आकाश में ििरािा ि।
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