Page 48 - Mann Ki Baat - Hindi May 2022
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भयारत की एकतया और श्ष्ठतया क मूल तत्व
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कती िर चीज़ मुझे आकवरसित करती ि।
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सियोच् आकांक्ाए रखििाि वकसी
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व्क्क् को अपिे विकास क निए जो
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कछ चाहिए, िि सब उसे भारत में नमि
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सकता ि।” यिी प्रणा सम्ितः इस समय
साकार रूप ि रिी ि। इस दश में सदा
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स्वीकारा गया ि वक जीिि का मित्वपूणन्स
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िक्ष् ‘सिन्स भूत हिते रतः’ पर आधाहरत
िोिा चाहिए। जब दनक्ण अफ्तीका में
प्ररो. जगमरोहन मसंह राजपूि पीरर माहरतज़बगन्स स्शि पर बैहरस्र
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पूिन्स निदशक, एिसीईआररी, और एम. क. गाधी को हरकर िोिे क बािजूद
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ितन्समाि में यूिकिो मिात्मा गांधी रशक्ा बािर फक फदया गया था, तब अत्त
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संस्ाि क गिनििंग बोड क अध्क् अपमािपूणन्स स्स्वत में अकि बैठ गाधी िे
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सोचा वक अपिे अपमाि का बदिा ि भी
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वपछि आठ िरषों में भारत का माि- निया तो क्ा? उन्ोंिे अपिे नक्वतज को
सम्ाि सारे विश् में बढ़ा ि। प्धािमंत्ी विस्तृत कर फदया, रंगभेद को समूि िष्ट
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कती दूरदृखष्ट, कमन्सठता, िगिशीिता और करिे में अपिे को पूरी तरि समवपसित कर
संिेदिशीिता को व्ाििाहरक स्वरुप फदया। प्धािमंत्ी जब ‘मि कती बात’ करते
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दिे िािी अिेक पहरयोजिाओं िे पंक्क् क ि, तब उसमें िर बार ऐसे नक्वतज विस्तार
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अंवतम छोर पर खड़ व्क्क् क जीिि और कती छवि निनचित िी फदखाई दती ि। अभी
उसकती गुणित्ता में सकारात्मक पहरितन्सि (८९ एवपसोड) में उन्ोंिे एक भारत श्ष्ठ
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वकया ि। इस पर वििगम दृखष्ट डाििे भारत कती भाििा क तित दश क विनभन्न
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पर यि पिष्ट फदखाई दता ि वक भारतीय प्दशों क िोगों क बीच बढ़ते हुए आपसी
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युिाओं क निए अिसरों क नक्वतज जुड़ाि क कई उदािरण फदए ि। साथ िी
का अभूतपूिन्स विस्तार हुआ ि। इसक अंत में किा वक अपिा ध्ाि रखखए, साथ
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पहरणामस्वरुप युिाओं द्ारा अप्त्ारशत िी साथ पशु-पनक्यों को दािा-पािी दिे
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रूप से ििाचार हुए ि, युिाओं िे स्वयं का माििीय उत्तरदाक्यत्व भी निभाइए।
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आगे बढ़कर रोज़गार क अिसर पैदा वकए विविधता में एकता और दि ऋण कती
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ि। यि सब बहुत िी मित्वपूणन्स दृखष्ट कोण यि परम्परागत समझ िी मेरे भारत को
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पहरितन्सि ि जो युिाओं का आत्मविश्ास श्ष्ठ भारत बिाती ि। िि भारत िी ि जिा ूँ
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तेजी से बढ़ा रिा ि। इस समय आिश्यकता प्कवत को, पशु-पनक्यों, पेड़-पोधों, िफदयों
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ि वक िर युिा २१ फरिरी १९२९ क मिात्मा –पिाड़ों तक को दित्व प्दाि वकया
गाधी क इि विचारों से पहरक्चत िो, “भारत गया ि। इस क निहित मंतव् को यफद
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